जशपुर नगर,द ब्लेज ई न्यूज। नगर सरकार में परिवर्तन की मांग को भारतीय जनता पार्टी की जिला आलाकमान ने सिरे से खारिज कर दिया है। शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी के जिला कार्यालय राधा कांत भवन में जिला कार्यकारिणी की बैठक के बाद, नगर पालिका के मुद्दे पर अलग से बैठक की गई। इस बैठक में सांसद श्रीमती गोमती साय,जिलाध्यक्ष सुनील गुप्ता,उपाध्याय सत्येंद्र सिंह,जिला संगठन प्रभारी राम किशुन सिंह के साथ भाजपा के सभी 17 पार्षद शामिल थे।
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पार्टी कार्यालय के एक बंद कमरे में पार्षदों के साथ पदाधिकारियों ने चर्चा की। सूत्रों के अनुसार,इस बैठक में असंतुष्ट पार्षदों ने अध्यक्ष नरेश चन्द्र साय की कार्यशैली पर खुल कर नाराजगी जताई। उनका कहना था कि नगर सरकार पर पूरी तरह से अधिकारियों के इशारे पर काम कर रही है। किसी भी मुद्दे पर न तो उनसे चर्चा की जाती है और ना ही विश्वास में लिया जाता है। बुरी तरह से भड़के पार्षदों का आरोप था कि पीआईसी को भी कागजी समिति बना कर रखा गया है। पीआईसी में बिना चर्चा के ही सरकारी फाइलों में हस्ताक्षर हो जाता है। इसकी जानकारी पार्षदों को नगर पालिका के अधिकारी और कर्मचारियों से मिलती है। नाराज पार्षदों को सुधार का भरोसा देकर मनाने की कोशिश की गई,लेकिन पार्षद मानने के लिए तैयार नहीं हुए। आखिर में गुप्त मतदान का सहारा लिया गया। इसमे, यथा स्थिति बनाएं रखने के पक्ष में परिणाम आया।
यह है पूरा मामला-
जानकारी के लिए बता दें कि नगर पालिका में भाजपा नीत नगर सरकार में दो दिन पूर्व हुए सामान्य सभा की बैठक में भाजपा पार्षदों का असंतोष खुल कर सामने आ गया था। नाराज चल रहे 12 पार्षद,लामबंद हो कर सामान्य सभा की बैठक से अनुपस्थित हो गए थे। गणपूर्ति के अभाव में,परिषद की बैठक को स्थगित कर दिया गया था। हद तो उस समय हो गया जब,ये पार्षद बैठक स्थगित होने के बाद,नगर पालिका पहुँच गए। इस हाई वोल्टेज ड्रामे ने भाजपा की खूब किरकिरी कराई।
बढ़ेगी सकती है,पार्टी की मुसीबत
बीते दो दिनों के अंदर नगर पालिका और भाजपा कार्यालय में हुए इस राजनीतिक घटनाक्रम का फिलहाल पटाक्षेप जरूर हो गया है,लेकिन राजनीतिक गलियारे में सवाल उठाया जा रहा है कि क्या असंतुष्ट पार्षद,जिला कार्यकारिणी के इस गुप्त मतदान और अनुशासन के पाठ से संतुष्ट हो जाएंगे? हालांकि बैठक में जिला पदाधिकारियों ने नगर सरकार की कार्यशैली में आमूलचूल परिवर्तन करने का आश्वशन दिया है। देखना होगा,नगर सरकार अपने वरिष्ठ नेताओं के इस भरोसे पर कितना खरा उतर पाती है?