द ब्लेज ई न्यूज,जशपुरनगर: केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी भारतमाला योजना के लिए जिले में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है। अधिग्रहण की इस प्रक्रिया के दौरान किसानों ने जिला प्रशासन से उचित मुआवजा दिलाने की गुहार लगाई है। किसानों का कहना है कि उनकी जमीन के बदले में जो राशि सरकार से मिल रही है,उससे वे दूसरी जमीन नहीं खरीद पा रहे हैं। ऐसे में वे भूमिहीन हो कर बेरोजगारी व भूखमरी का शिकार हो जाएंगें। चराईडांड़ से आए किसान विजय एक्का ने बताया कि वे और उनका पूरा परिवार पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं। भारतमाला सड़क के लिए सरकार ने उनकी दो एकड़ 19 डिसमिल ़ जमीन का अधिग्रहण किया हैं। इसके एवज में उन्हें 20 लाख रूपये मुआवजा देना तय हुआ है। इस राशि में वे दूसरी जगह जमीन लेने का प्रयास कर रहे हैं तो जमीन का भाव अधिक होने के कारण वे खरीद नहीं पा रहे हैं। किसान के अनुसार उनके गांव में खेती की जमीन का भाव 70 हजार रूपये डिसमिल से भी अधिक है। चराईडांड़ के डिपाटोली से आए किसान शत्रुघन का कहना है कि उनकी सवा एकड़ जमीन में से 53 डिसमिल जमीन का अधिग्रहण किया गया है। इसके एवज में 4 लाख 22 हजार रूपये का मुआवजा तय किया गया है। जबकि उनके गांव में सवा लाख रूपये डिसमिल में खेती की जमीन बिक रही है। अनूप बड़ा का कहना था कि सभी प्रभावित किसानों को 2 लाख प्रति डिसमिल के हिसाब से जमीन का मुआवजा मिलना चाहिए। ताकि किसान अपनी जमीन के बदले में दूसरी जमीन खरीद सके।
यह है रायपुर धनबाद एक्सप्रेस वे परियोजना –
देश के पूर्वी और मध्य क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए केंद्र सरकार ने भारतमाला परियोजना के अंर्तगत छत्तीसगढ़ से झारखंड के धनबाद तक चार लेन की एक्सप्रेस वे निर्माण की स्वीकृति दी है। इसकी कुल लंबाई 707 किलोमीटर है। यह सड़क छत्तीसगढ़ के रायपुर,बिलासपुर,कोरबा,जशपुर होते हुए झारखंड के रांची,बोकारो हो कर धनबाद से जुड़ेगी। इस एक्सप्रेस वे का निर्माण पूरा हो जाने से रायपुर से धनबाद की 707 किलोमीटर की दूरी 9 घंटे में पूरी की जा सकेगी। इस दूरी को तय करने में अभी लगभग 16 घंटे का समय लगता है। यह एक्सप्रेस वे छत्तीसगढ़ और झारखंड के कोयला,लोहा,बिजली,कपड़ा उद्योग के लिए विकास के लिए अहम होगा।

मुआवजे में नियमों के कई पेंच –
जिला न्यायालय के अधिवक्ता रामप्रकाश पांडे का कहना है कि भारतमाला प्रोजेक्ट के लिए जो जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया की जा रही है उसमें नियमों में कई पेंच हैं। इसमें अधिग्रहित किये जाने वाली जमीन की स्थिति,मात्रा के आधार पर मुआवजा तय किया जाता है। लेकिन इसकी स्पष्ट जानकारी प्रभावित किसानों को नहीं दी जाती है। इससे भ्रम की स्थिति बनती है जो कई बार विवादों में तब्दील हो जाती है। मामला न्यायालय में पहुंचता है,जिससे परियोजना के लटक जाने का खतरा बना रहता है।




